Friday, August 17, 2012

समीक्षा-समीक्षा


जीवन से गायब होते जा रहे
हरे रंग को
बचाने की कोशिश करती
कविताएं
                                                  -मिथिलेश कुमार राय
    
हरे रंग हमारी जिंदगी से गायब होते जा रहे हैं’- युवा कवि विमलेश त्रिपाठी के पहले कविता संकलन  हम बचे रहेंगे  की तीसरी कविता  कविता से लंबी उदासी  की एक पंक्ति है. इस पंक्ति से पहले वे लिखते हैं :
मेरे पास शब्दों की जगह
एक किसान पिता की भूखी आंत है
बहन की सूनी मांग है
छोटे भार्इ की कंपनी से छूट गयी नौकरी है
राख की ढेर से कुछ गरमी उधेड़ती
मां की सूजी हुई आंखें हैं...
इसे समझने के लिये पहले गांव को समझना होगा, किसान को समझना होगा, खेत को समझना होगा, और सबसे पहले इस बात को समझना होगा कि खेतों की लंबी पगडंडियों के लिये मेरी कविता में कितनी जगह है?’ यह एक बडा सवाल इसलिये है कि खेत का रिश्ता पेट से होता है और पेट का जीवन से . आज बडी तेजी से बदलती हुई दुनिया में उतनी ही तेजी से गांव के लोग भी कारपोरेट जगत का हिस्सा बनते जा रहे हैं. अब खेत को लीज पर लेकर उसमें मोबाइल टावर गाडे जा रहे हैं. किसानों की आत्महत्या करने की खबरें रोजमर्रा की खबरों में तब्दील होती जा रही है. इसलिये अब इस बात में कोई दम नहीं है कि सरकार किसानों के हक में क्या कर रही है या उनकी रुचि अपनी कुरसी बचाने के बनिस्पत खेत बचाने में कितना है. यहां सवाल यह उठता है कि कविता यानी साहित्य में अब कितने खेत बचे हैं?  क्या साहित्य भूमिहीन किसान की स्थिति में आ गया है या आनेवाले वर्षों में आ जायेगा?  जीवन से गहरे अर्थ में जुडा हुआ और सबसे कठिन संघर्ष का द्योतक किसान अगर साहित्य से गायब होता जा रहा है तो यह कोई शुभ लक्षण नहीं है. ऐसे समय में विमलेश का खेतों की, किसानों की बात करना संग्रह  हम बचे रहेंगे की सार्थकता को और मजबूत आधार प्रदान करता है.
   

हिचकी, बेरोजगार भाई के लिये, सपना, शब्दों के स्थापत्य के पार,  इंतजार आदि संग्रह की कई कवितएं जड की सुधि लेने का संकेत करती हैं : रात के बारह बजे कौन हो सकता है/...यह भी हो सकता है/ आम मंजरा गये हों-फल पक गये हों टिकोले/ और खलिहान से उठती चइता की कोई तान/ याद कर रही हो बेतरह /बारह बजे रात के एकांत में...असल में रात के बारह बजे कवि को हिचकी आ रही है. रात के बारह बजे जब दुनिया सो रही होती है, कवि हिचकी के संभावित कारणों पर मंथन करते अपनी जड तक ससर आता है कहीं न कहीं किसी को तो जरूरत है मेरी.

ऐसा होता है. हम कई बार कुछ और ही लिखने की बात सोचकर बैठते हैं, लेकिन लिखा कुछ और जाता है. अब यह किस दवाब के कारण होता है, इसके तह तक भी हमें जाना होगा वरना जीवन भर लिखने के बाद भी कुछ भी नहीं लिख पाने का दर्द सालता रहेगा : इस तरह उस सुबह/ बहुत कुछ लिखा मैंने /बस नहीं लिख पाया वही/जिसे लिखने के लिये रोज की तरह/सोचकर बैठा था.

प्रेम के बारे में एक दार्शनिक का कहना है कि इसकी शुरूआत सेक्स की संभावना से भले होता ही होती हो लेकिन इसे अपनी पूर्णता के लिये भक्ति तक का सफर तय करना होता है. जहां पहुंचने के बाद ही सर्वांत: सुखाय की भावना का उदय होता है. लेकिन ये सब बातें बहुत बाद की हैं. पहले तो यहीं से शुरू करना होता है. यहीं से मतलब इसी पृथ्वी के एक प्रेमी युगल से. लेकिन पृथ्वी की प्रकृति ऐसी बना दी गयी है कि प्रेम को बर्दाश्त करने का धैर्य ही जैसे समाप्त हो गया है. प्रेमियों के लिये ऐसे ऐसे दंड का प्रावधान कर रखा गया है कि पीढियां इस बारे में सोच कर कांप कांप उठती हैं :नहीं भेजूंगा हवा में लहराता कोई चुंबन
किसी अकेले पेड से
पालतु खरगोश के नरम रोओं से
या आईने से भी नहीं कहूंगा
कि कर रहा हूं मैं
सभ्यता का सबसे पवित्र
और सबसे खतरनाक कर्म.

लेकिन इस सत्य का क्या कीजिएगा कि : प्रेम एक पूरा ब्रहमांड है/और मैं इस होने का एकांत साक्षी.

य़ुवतर कवि मिथिलेश राय
संग्रह की कुल पैंसठ कविताओं की सबसे बडी विशेषता यह है कि इसमें ऐसी कोई भी कविता नहीं मिलती, जिसे पढते समय अंदर कुछ उतरने का एहसास नहीं होता हो. और किसी कवि की यह सबसे बडी सफलता है कि वे संवेदना के बीज को अपनी कविता के माध्यम से दूसरे के हृदय में भी अंकुरित कर सकने में सक्षम है.
                                                                               

हम बचे रहेंगे - विमलेश त्रिपाठी ( कविता संग्रह)
 'नयी किताब', दिल्ली
मूल्य 200 रू.
एफ-3/78-79, सेक्टर-16, रोहिणी, दिल्ली - 110089.
दूरभाष ः 011-27891526

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